गरम रोला के मज़दूरों की सोशल साइटस व इस तरह के अन्य माध्यमों से वजीरपुर मज़दूर आन्दोलन से जुड़े साथियों से एक अपील
साथियों
जैसा कि आप लगातार हमारे ब्लॉग्ा व फेसबुक से अपडेट पा रहे हैं, हम सभी मज़दूर 6 जून से अपनी कानूनी मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। 27 तारीख को मालिक समझौता करने पर भी मज़बूर हुए थे पर उसके बाद वो अपने ही समझौते से मुकर गये जिसके बाद हमने तय किया कि हम फै़क्टरियों पर कब्ज़ा करेंगे व अगर ज़रूरत पड़ी तो उत्पादन व वितरण भी खुद ही करेंगे। इस समय मालिक पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर आन्दोलन का दमन करने पर तुले हुए हैं पर हम तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी डटे हुए हैं।
ग़ौरतलब है कि इसी आन्दोलन के बीच में हमने 'इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र' के कुछ दलालों को इस हड़ताल से निकाल भगाया था जो लगातार हड़ताल तोड़ने की कार्रवाई कर रहे थे व हमारे साथ शुरू से ही डटकर खड़े 'बिगुल मज़दूर दस्ता' के कार्यकर्ताओं व गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्वकारी निकाय के खिलाफ घटिया दर्जे का कुत्साप्रचार कर रहे थे। अपनी खुन्नस में हड़ताल तोड़ने के लिए उन्होने यहां तक कि एक पत्र जारी कर दिया था कि अब मज़दूर कमज़ोर पड़ गये हैं व शर्मनाक समझौते की कगार पर खड़े हैं। पहली बात तो यह है कि हम कभी भी कमज़ोर नहीं पड़े। भुखमरी की नौबत आने की परिस्थिति में हमने देशभर के शुभचिंतकों के सहयोग से सामुदायिक रसोई भी शुरू कर दी थी। अगर हमें भूखे पेट रहकर लड़ना पड़े तो भी हम तैयार हैं। इसके अलावा अगर किसी आन्दोलन में मज़दूर कमजोर भी पड़े हों तो किसी मज़दूर हितैषी संगठन का ये काम तो कतई नहीं हो सकता कि वो मालिकों को इशारा करे कि आ जाओ, अब मज़दूर कमजोर पड़ गये हैं। ऐसा काम करने वाला अव्वल दर्जे का गद्दार व मज़दूर विरोधी ही हो सकता है।
इसके बाद इन्होने अपना घृणित चेहरा और नंगा करते हुए गरम रोला मज़दूर एकता समिति की कानूनी सलाहकार शिवानी के विरूद्ध निहायत ही आपत्तिजनक महिला विरोधी शब्द प्रयोग करते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट डाली जिसके बाद में इनके संगठन के लोगों को शिवानी ने अपने नम्बर से फोन कर वो पोस्ट हटाने को बोला पर इन्होने ऐसा करने से मना कर दिया। इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर ये कौन सी संस्कृति दिखा रहे हैं, आप खुद समझ सकते हैं।
29 जून को जब हमने कारखानों पर कब्ज़ा करना शुरू किया तो इनके चार कार्यकर्ता वहां पहुँचे व हमें बोलने लगे कि आठ घण्टे काम करना शुरू कर दो। ये समझौता ही ठीक है वरना आगे पछताओगे। सब जानते हैं कि ब्लास्ट फर्नेस पर आठ घण्टे लगातार कोई काम नहीं कर सकता है, लगातार काम करने पर उसकी मृत्यु भी हो सकती है। जो बात मालिक बोल रहे थे, वही इन्होने बोलते हुए हमसे हड़ताल तोड़ने की अपील की। मालिकों से इनकी सांठगांठ यहां पूरी तरह उभरकर सामने आ गयी। इसके बाद लगभग 100 मज़दूरों ने इनको घेर लिया व वहां से खदेड़ना शुरू किया। इनके साथ हमने किसी तरह की मारपीट नहीं की बल्कि इन्हे उस इलाके से सिर्फ खदेड़ा। इसके बाद ये सीधा पुलिस चौकी गए व हमारे नेतृत्व के खिलाफ जान से मारने की कोशिश की एफआईआर करने की कोशिश की। यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि इन्होने आज जारी अपने पत्र में सभी 100-150 मज़दूरों को, जो इन्हे दौड़ा रहे थे, लम्पट भीड़ कहा है। आप खुद समझ सकते हैं कि किसी को मज़दूर क्यों बार बार भगा रहे हैं। 20 जून को भी इनके साथी हरीश को हमने हड़ताल स्थल से खदेड़ दिया था। वीडियो भी आप देख सकते हैं (जिसका लिंक है - https://www.youtube.com/watch?v=S11KvcKXsoo)। हमने इनके साथ किसी तरह की मारपीट नहीं की। इस तरह के गद्दार चींटो को मसलने के लिए तोप चलाने की जरूरत नहीं है। मज़दूरों आन्दोलनों के साथ गद्दारी करने वाले ऐसे चींटे अपनी मौत मर जायेंगे, हमें पता है। इसके बावजूद इन्होने मालिकों से सांठगांठ कर हमारे नेतृत्व के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवायी ताकि हड़ताल टूट जाये। इसके बाद इन्होने थाने में तमाम जनवादी संगठनों (कॉरेस्पोंडेस ग्रुप, मज़दूर पत्रिका, मेहनतकश मज़दूर मोर्चा, ) के लोगों को बुलाया पर जब इन सारे कॉमरेडों को असली मसले का पता लगा तो इन्होने भी कोई हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। हमें लगता है कि तमाम कॉमरेडों ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर अच्छा किया। इसके अलावा इन्होने अपने पत्र में एक ओर बड़ा झूठ बोला है कि थाने में पीयूडीअार (PUDR) के लोग भी थे। पीयूडीआर (PUDR) का कोई भी कॉमरेड वहां नहीं आया था। आप खुद समझ सकते हैं कि इमके नामक इस संगठन के लोग किस तरह के घटिया, गद्दार और लफ्फाज हैं।
हमारी हड़ताल के साथ शुरू से ही खड़े रहे बिगुल मज़दूर दस्ता के कॉमरेड तमाम सारी परेशानियां झेल रहे हैं। पुलिस दमन से लेकर इस तरह के कुत्साप्रचारकों व गद्दारों द्वारा किया जा रहा मानसिक दमन भी। कल ही जब हम फैक्टरियों पर कब्ज़ा कर रहे थे तो पुलिस ने बिगुल मज़दूर दस्ता के नवीन व अन्य कॉमरेडों के साथ मारपीट की थी, बिगुल के ही कुणाल, गजेन्द्र व गरम रोला मज़दूर एकता समिति के सनी को थाने में भी दो घण्टे बन्दी रखा गया था। बाद में हम तमाम मज़दूरों द्वारा थाने को घेरने व देशभर के संजीदा साथियों के फोनकॉल्स की बदौलत पुलिस को उन्हे छोड़ना पड़ा।
अत: हम सभी मज़दूर इस घृणित कुत्साप्रचार मुहिम का पूर्ण खण्डन करते हैं व इंकलाबी मज़दूर केन्द्र-जनज्वार गिरोह का पूर्ण बहिष्कार। हमने निश्चित रूप से इन्हे 20 व 29 तारीख को खदेड़ा क्योंकि ये मालिकों व पुलिस के साथ सांठगांठ करके हड़ताल को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। हमें शक़ है कि इसके लिए इन्होने मालिकों से घूस भी ली है। इनकी इन्ही घृणित कार्रवाइयों के कारण हमने इन्हे दो बार खदेड़ा व आगे अगर ये दुबारा आयेंगे तो भी खदेड़ेंगे। हमने अपनी आम सभा करके ये शपथ ली है कि इन्हे इस इलाके में नहीं घुसने देंगे। जहां तक मारपीट का सवाल है तो हम साफ कर दें कि इस तरह के खटमलों पर हाथ चलाकर हम अपने हाथ खराब नहीं करना चाहते।
आपमें से किसी को अगर इस ब्यौरे पर शक हो तो आप वजीरपुर औद्योगिक इलाके में आकर किसी भी मज़दूर से इनके बारे में नाम लेकर पूछ सकते हैं। हर मज़दूर अापको इनकी असलियत बयां कर देगा।
एक ऐसे समय में जब हम मालिकों व पुलिसिया दमन के खिलाफ लड़ रहे हैं, बिगुल के साथी हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर जुझ रहे हैं तब ये गद्दार और दलाल अपने असली चरित्र को सबके सामने उघाड़ रहे हैं। फेसबुक व मेल पर हमसे सम्पर्क रखने वाले सभी साथियों से हमारा आग्रह है कि ऐसे गद्दारों को जवाब दें, सिर्फ चुपचाप देखें ना, तमाशबीन ना बनें। यदि आपका मज़दूर आन्दोलन से जुड़ाव है तो किनारे बैठकर मजे ना लें बल्कि ऐसे लोगों को आप भी जवाब दें, हम तो हर जवाब दे ही रहे हैं।
गरम रोला मज़दूर एकता समिति से जुड़े सभी मज़दूर
फिरोज, अम्बिका, बाबुराम, 9873358124
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