आन्दोलन के दलालों की चालें और मालिकों के
मंसूबों पर गरम रोला मज़दूरों ने फिर से पानी फेरा
गरम रोला मज़दूर एकता समिति की एक और साहसिक जीत
ज्ञात हो कि 22 दिनों की हड़ताल
के बाद कल (27 जून) को वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मालिकों
ने ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ के समक्ष समर्पण कर दिया। लेकिन आज
सुबह मालिक उस सरकारी समझौते को लागू करने में आनाकानी करने लगे और कारखानों में
मज़दूरों को घुसने से रोकने लगे। इसके बाद ‘गरम रोला मज़दूर समिति’ के
नेतृत्व में अलग-अलग कारखानों के मज़दूरों ने कारखानों के गेट को जाम कर दिया और
श्रम विभाग से सम्पर्क किया। थोड़ी ही देर में उप श्रमायुक्त कुछ श्रम निरीक्षकों
के साथ स्वयं घटना स्थल पर पहुँच गये। इसके बाद एक मालिक के कारखाने में
त्रिपक्षीय वार्ता दोपहर 1 बजे शुरू हुई जिसमें श्रम विभाग के
अधिकारियों ने मालिकों को स्पष्ट बता दिया कि अगर मालिक कानूनी तौर पर कारखाने
नहीं चला सकते और श्रम कानूनों को लागू नहीं कर सकते तो उनके कारखानों पर ताले लगा
दिये जायेंगे। मालिक इस बात पर अड़े हुए थे कि 8 घण्टे का
कार्यदिवस में मज़दूरों को भट्ठी के समक्ष लगातार बिना रुके काम करना होगा। सभी
जानते हैं कि यह असम्भव है। हर 30-40 मिनट पर ब्रेक लिये बग़ैर मज़दूर उस
तापमान पर काम करेगा तो उसकी मौत भी हो सकती है। ऐसे में, ‘गरम रोला मज़दूर
एकता समिति’ ने यह चुनौती रखी कि अगर मालिक मज़दूरों को पूरे
सुरक्षा के इन्तज़ामात और गियर मुहैया कराये, तो मज़दूर 8
घण्टे लगातार कार्य करने को तैयार हैं। 1 बजे शुरू हुई वार्ता रात के साढ़े आठ
बजे तक चलती रही। जब मज़दूरों का प्रतिनिधि-मण्डल नहीं झुका तो अन्ततः मालिकों ने
फिर से उप श्रमायुक्त के समक्ष सारी शर्तों को फिर से मानते हुए हस्ताक्षर किये और
कल से कारखाने चलाने का आश्वासन दिया। निश्चित तौर पर अभी भी यह वक़्त बतायेगा कि
ये मालिक इस कानूनी समझौते पर अमल करते हैं या नहीं।
वास्तव में, आज मालिकों के
पलटी खाने के पीछे भी एक अन्तःकथा है। कल मालिकों के बीच भय का माहौल था और
उन्होंने ज़्यादा अड़े बग़ैर समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया था। लेकिन मालिकों के करीब
मौजूद और मज़दूरों से हमदर्दी रखने वाले कुछ सफेद कॉलर कर्मचारियों ने नाम न बताने
की शर्त पर कहा कि ‘इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र’ के जिन भगोड़ों
को आप लोगों ने अपने आन्दोलन से 20 जून को मार भगाया था, उनके
द्वारा यह प्रचार किया जा रहा है कि मज़दूर भीतर से कमज़ोर हो गये हैं और किसी “शर्मनाक
समझौते” का इन्तज़ार कर रहे हैं। यह प्रचार मालिकों और उनके गुर्गों के पास भी
पहुँचा है और ऐसा भी सम्भव है कि आन्दोलन के भगोड़ों ने स्वयं मालिकों के चमचों को
यह अफवाह पहुँचायी हो कि मज़दूर कमज़ोर पड़ रहे हैं। ऐसे में, मालिकों के बीच
यह राय बनी कि वे 27 जून को बेवजह झुक गये और अगर वे मज़दूरों को और
इन्तज़ार करवाते तो फिर मज़दूर स्वयं टूट सकते थे। यही कारण था कि आज मालिकों ने
पलटी खायी और समझौते से मुकर गये। उन्हें उम्मीद थी कि इन्तज़ार करवाने से मज़दूर आज
ही टूट जायेंगे। लेकिन मालिकों और भगोड़ों की यह चाल आज भी कामयाब नहीं हो सकी।
मालिकों ने जानबूझकर वार्ता को 8 घण्टे तक चलाया ताकि मज़दूर थककर
समझौता कर लें। लेकिन बीतते वक़्त के साथ मज़दूरों का उत्साह और भी बढ़ता गया और रात
8 बजे तक उनके बीच यह प्रस्ताव पास हो गया कि अगर मालिक कानूनों का
पालन करते हुए कारखाने नहीं चला सकता तो हम कारखानों पर कब्ज़ा करके कारखानों को
स्वयं चलायेंगे और सरकार से माँग करेंगे कि वह इन कारखानों को ‘टेक-ओवर’
करे,
विनियमित
करे और स्वयं कानूनी तौर पर चलाये। मज़दूरों का यह पैग़ाम 8 बजे ही मालिकों
के पास वार्ता में पहुँचा दिया गया और फिर कुछ समय में ही मालिक फिर से सभी शर्तों
पर राज़ी हो गये। ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ ने
एक बार फिर से इन भगोड़ों की चालों को और मालिकों के मंसूबों का नाकामयाब करते हुए
अपनी फौलादी एकजुटता को ज़ाहिर कर दिया है।
‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ की
नेतृत्वकारी समिति के रघुराज ने बताया कि मज़दूर पूर्णतः कानूनों को लागू करवाने के
पक्षधर हैं और यह मालिकों की कैसी अन्धेरगर्दी है कि वे खुलेआम यह कह रहे हैं कि
वे श्रम कानूनों को नहीं लागू करेंगे। मज़दूरों ने भी यह ठान लिया है कि वज़ीरपुर के
गरम रोला कारखाने चलेंगे और कानूनी तौर पर चलेंगे, चाहें उन्हें
मालिक चलायें, सरकार चलाये या फिर स्वयं मज़दूर चलायें। समिति
की कानूनी सलाहकार शिवानी जिन्होंने आज मज़दूर प्रतिनिधि मण्डल की अगुवाई की,
ने
कहा कि मज़दूर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। शिवानी ने बताया कि कारखाना अधिनियम,
1948
नियोक्ता को ‘कब्ज़ाकर्ता’ (ऑक्युपायर ऑफ दि
फैक्टरी) बोलता है और ‘कब्ज़ाकर्ता’ के तौर पर
मालिकों की यह ज़िम्मेदारी होती है कि वे सभी कारखाना व श्रम अधिनियमों को लागू
करें। यदि ‘कब्ज़ाकर्ता’ ऐसा करने में
असफल रहता है तो क्या कारखाने का प्रबन्धन मालिकों के हाथ से ले नहीं लिया जाना
चाहिए? क्या उसे मज़दूरों के हाथों में नहीं सौंप दिया जाना चाहिए? या
फिर सरकार को ऐसे उद्योगों का राष्ट्रीकरण नहीं कर देना चाहिए? अगर
मज़दूर स्वयं कब्ज़ा लेने या फिर सरकार द्वारा कब्ज़ा लिये जाने की माँग उठाते हैं तो
वह कानूनन भी ग़लत नहीं है। नेतृत्वकारी समिति के सदस्य सनी ने कहा कि मज़दूरों के
बीच ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’ निरन्तर इन कानूनी दावपेचों के प्रति
जागरूकता पैदा कर रही है। मज़दूर स्वयं यह कह रहे हैं कि अगर कारखाना उन्हें दिया
जाये तो वे उसे ज़्यादा अच्छी तरह से चला सकते हैं और वह भी सभी अधिनियमों का पालन
करते हुए। ऐसे में, यदि कल मालिक फिर से समझौते से मुकरते हैं तो
मज़दूर गेट ऑक्युपाई करने के मध्यवर्ती कदम से शुरुआत करेंगे और श्रम विभाग और
सरकार तक अपनी बात पहुँचाएँगे। उसके बाद ज़रूरत पड़ने पर कारखानों पर कब्ज़ा करने का
आन्दोलन शुरू किया जायेगा। सनी ने कहा कि मालिक अभी चेत जायें और सभी श्रम कानूनों
का पालन करते हुए कारखानों को चलायें अन्यथा कल उनके जैसे ग़ैर-ज़रूरी वर्ग के लिए
वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में कोई जगह नहीं बचेगी।
अन्त में, मज़दूरों ने कहा
कि कल या तो समझौता पूर्णतः लागू किया जायेगा या फिर 27 जून तक चली
हड़ताल की अब ‘कारखाना कब्ज़ा करो’ आन्दोलन के रूप
में पुनः शुरुआत की जायेगी।
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