मज़दूर आन्दोलन में घुसे ‘इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र’ के दलालों से सावधान!
वज़ीरपुर के गरम रोला मज़दूरों के सामने बेनक़ाब होने और खदेड़े जाने के बाद ‘इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र’
का निकृष्ट
कुत्साप्रचार अभियान
साथियो!
मज़दूर आन्दोलन अक्सर अपनी मालिकों की मज़बूती की वजह से नहीं बल्कि अपने भीतर
मौजूद भितरघातियों और ग़द्दारों के कारण हारता है। मज़दूर आन्दोलन के भीतर मालिकों
का वर्ग हमेशा ही अपने दलाल पैदा करने का प्रयास करता है और मज़दूर आन्दोलनों के
दौरान ऐसे प्रयास और भी तेज़ हो जाते हैं। ऐसा ही एक प्रयास वज़ीरपुर के गरम रोला के
मज़दूरों के आन्दोलन के भीतर भी मालिकों और ठेकेदारों ने किया जिसे कि मज़दूरों ने
अपनी उन्नत राजनीतिक चेतना के बूते पर कुचल दिया। ‘इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र’ नाम का एक संगठन वज़ीरपुर
के गरम रोला मज़दूरों के आन्दोलन के भीतर मालिकों के एजेण्ट के तौर पर 6 जून को हड़ताल शुरू होने
के बाद ही घुसने का प्रयास कर रहा था। हाल ही में 6 जून को गरम रोला मज़दूरों ने
अपनी शानदार हड़ताल की शुरुआत की जो कि आज 22वें दिन में प्रवेश कर चुकी है।
इस दौरान मज़दूरों ने अपनी सामुदायिक रसोई चलाकर और दिल्ली के अन्य औद्योगिक
क्षेत्रों के मज़दूरों के साथ एकजुटता स्थापित करके बेजोड़ प्रयोग किये हैं। जब से
हड़ताल शुरू हुई तभी से इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र का मुन्ना प्रसाद (जो कि एक पुराना
दलाल है और पिछले वर्ष गरम रोला मज़दूरों के यूनियन-सम्बन्धी व अन्य कानूनी कागज़ात
गरम रोला मज़दूर एकता समिति के दफ्तर से चुराकर भाग गया था), हरीश (जो कि भ्रष्ट लेबर
इंस्पेक्टरों से साँठ-गाँठ कर मज़दूरों के संघर्ष को तोड़ने की साज़िश कर रहा था),
कमलेश (जिसे एक
दिन गरम रोला मज़दूरों ने ही दौड़ा लिया था) और नगेन्द्र लगातार मज़दूरों के आन्दोलन
में सक्रिय ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के राजनीतिक कार्यकर्ताओं शिवानी, दिल्ली कामगार यूनियन के नवीन,
करावलनगर मज़दूर
यूनियन के योगेश, और गरम रोला मज़दूर एकता समिति की नेतृत्वकारी कमेटी के सदस्य रघुराज, सनी, बाबूराम आदि के प्रति
घटिया स्तर का कुत्साप्रचार कर रहे थे। इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र की दलाली का आलम यह
था कि इसके कार्यकर्ता एक ब्लॉक के मज़दूरों को अन्य ब्लॉक के मज़दूरों से लगातार
लड़ाने और फूट डालकर हड़ताल तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’
के रघुराज और सनी
द्वारा इन्हें बार-बार चेतावनी दी गयी लेकिन वे अपनी हरक़तों से बाज़ नहीं आ रहे थे।
लेकिन उनकी पूरी दलाली तब सामने आयी जब पता चला कि इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के ये
दलाल श्रम विभाग के कुछ भ्रष्ट लेबर इंस्पेक्टरों की गाड़ियों में घूम रहे हैं और
अन्दर से श्रम विभाग में यूनियन व मालिकों के बीच चल रही वार्ता को तुड़वाने की
कोशिश कर रहे हैं। 20 जून को इन दलालों की कारगुज़ारियों का पर्दाफाश हो गया और मज़दूरों ने इन्हें
धक्के मारकर अपने हड़ताल स्थल से खदेड़ दिया।
जब ‘इंक़लाबी
मज़दूर केन्द्र’ के ये दलाल आन्दोलन को तोड़ने में असफल रहे तो उन्होंने चारों तरफ़ गरम रोला
मज़दूर एकता समिति के नेतृत्वकारी कमेटी के नेता रघुराज और समिति की कानूनी सलाहकार
और बिगुल मज़दूर दस्ता से जुड़ी कार्यकर्ता शिवानी के ख़िलाफ़ एक घटिया
कुत्साप्रचार वाला मेल भेजना शुरू किया है। इस मेल में इन दलालों ने दावा किया है
कि रघुराज एनजीओ और भाजपा का दलाल एक छुटभैया लम्पट है, धन्धेबाज़ है, बिका हुआ है, मालिकों से पैसे खाता है
और बिगुल मज़दूर दस्ता किताबें छापने का काम करता है। अगर ऐसा ही है तो ‘इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र’
के ये दलाल वापस
मज़दूरों के बीच क्यों नहीं आते? ये आन्दोलन से भाग क्यों खड़े हुए? इसके दलालों को मज़दूरों ने थप्पड़
जड़कर भगा क्यों दिया? इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के दलाल दावा करते हैं कि ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के लोगों ने पुलिस की
मदद से उन्हें बाहर निकलवा दिया, तो वे यह क्यों नहीं बताते कि तब वहाँ मौजूद सैंकड़ों मज़दूर
चुप क्यों रहे? ये सच क्यों नहीं बताते कि स्वयं गरम रोला मज़दूरों ने इन दलालों को पीटा और
फिर दौड़ा कर बाहर खदेड़ दिया था? ये सारे सवाल ही ‘इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र’ के दलालों की असलियत को साफ़
करता है। इससे पहले भी यह संगठन अन्य संगठनों के प्रति कुत्साप्रचार की राजनीति
करता रहा है और आज ये वही आरोप लगाने का प्रयास कर रहा है जो आरोप कई संदिग्ध तत्व,
मज़दूर आन्दोलन के
भगोड़े और ग़द्दार लम्बे समय से लगा रहे हैं, लेकिन वे ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ और ‘गरम रोला मज़दूर एकता
समिति’ का
कुछ नहीं बिगाड़ पाये। इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के दलालों ने प्रचार किया है कि गरम
रोला मज़दूर आन्दोलन असफल हो चुका है और अब वह एक शर्मनाक समझौते का इन्तज़ार कर रहा
है। यह संघर्षरत मज़दूरों का अपमान है जो अभी भी तमाम मुश्किलों, गुण्डों और दलालों के
बावजूद अपनी सामूहिक रसोई चलाते हुए हड़ताल में टिके हुए हैं; ये उन मज़दूरों के साहस
का अपमान है जिन्होंने 26 जून को ही जन्तर-मन्तर पर विशाल प्रदर्शन कर शासन-प्रशासन
को हिला दिया; ये उन मज़दूरों के हौसले की तौहीन है जो हर रोज़ वज़ीरपुर के राजा पार्क में
एकत्र हो हड़ताल को जारी रखने की शपथ ले रहे हैं और लड़ रहे हैं। इंक़लाबी मज़दूर
केन्द्र के दलालों ने अपनी बौखलाहट में पतन की सभी हदें पार कर दी हैं। चूँकि
वज़ीरपुर के संघर्षरत गरम रोला मज़दूरों ने इन दलालों को आन्दोलन से मार भगाया इसलिए
अब वे मज़दूरों को ही थका हुए और शर्मनाक समझौते का इन्तज़ार करने वाला बता रहे हैं
और उनके नेतृत्व को गालियाँ दे रहे हैं।
हड़ताल जीतने के करीब गरम रोला मज़दूरों के संगठन ‘गरम रोला मज़दूर एकता समिति’
ने इस हड़ताल में
एक नया प्रयोग किया है जिसमें कि मज़दूरों ने सामूहिक नेतृत्व, सामूहिक निर्णय, सामुदायिक रसोई, शिक्षा सहायता मण्डल आदि
जैसे नायाब प्रयोग किये हैं। गरम रोला मज़दूर एकता समिति ने अपने ब्लॉग पर ही
स्पष्ट लिखा है कि यह संगठन चुनावी पार्टियों से जुड़ी ट्रेड यूनियनों, एनजीओ और फण्डिंग
एजेंसियों का बहिष्कार करता है और उनसे किसी भी प्रकार के सहयोग लेने के ख़िलाफ़
है (http://garamrolla.blogspot.in/)। गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्वकारी समिति के
लोगों ने 26 जून को जन्तर-मन्तर पर हुई अपनी विशाल जनसभा में भी बार-बार बताया था कि
स्वयंसेवी संगठन साम्राज्यवादी एजेण्ट हैं और उन्हें गरम रोला मज़दूरों के आन्दोलन
में कतई नहीं घुसने दिया जायेगा और न ही सत्ता वर्ग की दलाल ट्रेड यूनियनों को आन्दोलन
में घुसने दिया जायेगा। इसके बावजूद ‘इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र’ के हरीश ने अपनी मेल में ‘गरम रोला मज़दूर एकता
समिति’ और ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’
के विरुद्ध घटिया
आरोप लगाये हैं। यह हरीश वही व्यक्ति है जो कि लेबर इंस्पेक्टर की गाड़ी में घूम
रहा था और उसके फोन पर गुपचुप षड्यन्त्र करके मज़दूरों और मालिकों के बीच की वार्ता
को तोड़ने का प्रयास कर रहा था! आज ये दलाल लोग रघुराज व गरम रोला मज़दूर एकता समिति
के अन्य नेतृत्वकारी साथियों को घूसखोर, लम्पट और दलाल करार दे रहे है, जबकि अभी एक सप्ताह पहले
ही ये बार-बार रघुराज के पास हाथ-पाँव जोड़ रहे थे कि उन्हें भी हड़ताल के मंच से
बोलने दिया जाय! अब ये ग़द्दार दावा कर रहे हैं कि इन्होंने रघुराज से वित्तीय
पारदर्शिता और एनजीओ पर संघर्ष चलाया था जबकि ऐसा कुछ कभी हुआ ही नहीं था, क्योंकि अगर ऐसा होता तो
इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के कार्यकर्ता 6 जून की हड़ताल के बाद से रघुराज और सनी के, जो कि यूनियन की लीडिंग
कमेटी के सदस्य हैं, आगे-पीछे क्यों घूम रहे थे?
दरअसल बात यह है कि इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र अपने बेनक़ाब हो जाने और अपनी चरित्र
के नंगे हो जाने के कारण बौखलाया हुआ है और इसीलिए एक जारी आन्दोलन के ख़िलाफ़
चारों तरफ़ मेल भेजकर प्रचार कर रहा है। चूँकि मज़दूरों ने इन दलालों को अपने
आन्दोलन से पीटकर और बेइज़्ज़त करके निकाल बाहर किया इसलिए अब अपनी खुन्नस में ये
निकृष्ट कोटि के प्रचार पर आमादा हो गये हैं और गरम रोला मज़दूर आन्दोलन के प्रमुख
नेताओं रघुराज, सनी, शिवानी
और इसमें सहयोग कर रहे संगठन ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के ख़िलाफ़ कुत्सा-प्रचार कर रहे हैं। इस प्रचार की
सच्चाई जानने के लिए कोई भी वज़ीरपुर के गरम रोला मज़दूरों से सीधे सम्पर्क करके
इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र के बारे में पूछ सकता है, उसे स्वयं ही मज़दूर इनके चरित्र
के बारे में बता देंगे।
यह मेल किसी सफ़ाई के लिए नहीं भेजा जा रहा है क्योंकि 27 जून यानी कि आज ही श्रम कार्यालय में वार्ता जारी है और
मज़दूर आन्दोलन विजय के करीब है। हमें सफ़ाई देने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह मेल
इसलिए भेजा जा रहा है कि ऐसे दलाल संगठनों के ख़िलाफ़ हम सभी साथियों को आगाह कर
सकें। हमें कहीं भी इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र जैसे संगठनों को घुसने नहीं देना चाहिए
क्योंकि ये दीमक की तरह भीतर से पूरे संघर्ष को खा जाते हैं। वज़ीरपुर के मज़दूर
आन्दोलन ने अपनी उन्नत राजनीतिक चेतना के कारण इनकी दाल नहीं गलने दी। लेकिन ऐसे
संगठन कई बार अपनी कुत्सित कार्रवाइयों में कामयाब भी हो जाते हैं। इसलिए हमें
सावधान रहना होगा और मज़दूर आन्दोलन का दरवाज़ा ऐसे षड्यन्त्रकारियों के ख़िलाफ़
बन्द करना होगा।
जारीकर्ताः
रघुराज, सनी (सदस्य, नेतृत्वकारी समिति, गरम रोला मज़दूर एकता समिति)
'इंकलाबी मजदूर केंद्र' के दलालों को मजदूरों का लात बहुत जरूरी था |
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